"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं,
मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
रविवार, 15 मार्च 2020
" मचान लबों का ...."
पन्नों में दबे गुलाब जब तब महक उठे,
सीने की धौकनी से उसे जब भी साँसे मिली।
एक शायर कसमसा रहा था अरसे से किताब में,
तेरे लबों का मचान पा वो आसमान छू गया।
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