"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं,
मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
सोमवार, 13 अगस्त 2018
" खरोंच ....."
वास्ता रोज़ ही होता है, गुफ़्तगू मगर नही होती।
जुगनू तो मचलते रोज़, मगर रोशनी नही होती।
मुख्तलिफ अंदाज़ उनके, मुख्तसर सी ज़िन्दगी अपनी।
दुआओं में तो रखते खूब, कहर भी वो मेरे नाम करते।
मोहब्बत की खरोंच सारी अब, जिस्म पे मेरे सरेआम कर दी।
सुंदर रचना
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