'दिल' , 'दिमाग' और 'जिस्म' , इन्ही तीन हिस्सों में किसी व्यक्ति को विभक्त किया जा सकता है । यह तीन हिस्से अपने में परिपूर्ण होने के साथ साथ अपनी अपनी रूचि ,अपनी अपनी प्रवृत्ति और अपनी अपनी आवश्यकताएं लिए होते हैं ।
'दिल' सबसे घुलना मिलना चाहता है । स्नेह करना और पाना चाहता है । यह तर्क नहीं जानता , विमर्श नहीं मानता । 'दिमाग' तर्क करता है ,'क्यों' और 'क्यों नहीं' में उलझा रहता है और इसका समाधान मिलते ही अगली उलझन को निमंत्रण दे डालता है ,यही उसकी प्रवृत्ति है । 'जिस्म' ही चूंकि वह अवयव है व्यक्ति का ,जो दिखाई पड़ता है इसीलिए 'जिस्म' सदा खूबसूरत ,सुदृढ़ और सुन्दर दिखना और बना रहना चाहता है ।
जब व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से मिलता है ,संवाद करता है तब वास्तव में दोनों व्यक्तियों के यही तीनो अंग अलग अलग आपस में संवाद करते हैं । 'दिल' से 'दिल' बात करता है और 'दिमाग' सामने वाले के 'दिमाग' को टटोल कर उससे बात करने की चेष्टा करता है और दोनों के 'जिस्म' अपनी अपनी जगह पर रहते हुए एक दूसरे की बाह्य ज्यामिति समझने का प्रयास करने में लग जाते हैं ।
कुदरत ने व्यक्ति की ऐसी रचना की है कि इन तीनो अंगों के परस्पर संवाद सामने वाले के साथ बहुत द्रुति गति से स्थापित होते हैं । इस संवाद के दौरान व्यक्ति के अपने तीनो अंगों के भीतर भी सामने वाले व्यक्ति को लेकर जद्दोजेहद चलती रहती है । अगर तीन में से दो अंग सामने वाले के उन दोनो अंगों से प्रभावित हो जाते हैं तब दोनों व्यक्ति आपस में मैत्री स्थापित कर सकते हैं , यह दो अंग कोई भी हो सकते हैं ।
यदि 'दिल' और 'दिमाग' सामने वाले के 'दिल' और 'दिमाग' से प्रभावित होते हैं तब वैचारिक मित्रता अथवा स्नेहपूर्ण मित्रता स्थापित होती है और अगर 'जिस्म' एवं 'दिल' का युग्म सामने वाले के 'जिस्म' एवं 'दिल' को पसंद कर लेता है तब उनमे प्यार और परस्पर शारीरिक मिलान की चाह पनप जाती है । अब यदि 'जिस्म' और 'दिमाग' का युग्म बनता है तब भी प्यार तो पनपता है और जिस्मानी मिलान की इच्छा भी होती है पर दोनों के 'दिमाग' की उपस्थिति से अंकुश लग सकता है ।
वैवाहिक जीवन की सफलता ,असफलता भी पति और पत्नी के इन्ही तीन अवयवों के परस्पर संवाद की सफलता पर निर्भर करती है । विवाहेत्तर संबन्ध बनाने में भी इन्ही तीनो अंगों का असंतुलन काम करता है । समाज में जब भी कहीं कोई विकृति या विकार देखने को मिलता है ,वह बस इन्ही तीनो के परस्पर सामंजस्य के अभाव में ही होता है । अचम्भे की बात तो यह है कि उम्र की इसमें कोई भूमिका नहीं होती ।
व्यक्ति के इन्ही तीन (अंगों) टांगो पर समाज की मस्तिष्क प्रधान व्यवस्था टिकी हुई है और इन टांगो में से सबसे कमजोर टांग 'जिस्म' ही है और सबसे मजबूत 'दिमाग' । जिस समाज की यह कमजोर टांग टूटती है वह पुनः पाशविक समाज की और झुकने लगता है । इसीलिए समाज के अग्रणी लोगों को जिन्हे लोग रोल मॉडल की तरह देखते हैं उन्हें ऐसे विकारों से अवश्य बचना चाहिए और बचने का एकमात्र तरीका यही है कि जिस्मानी सन्तुलन न बिगड़ने दे ,भले ही 'दिल' और 'जिस्म' कितने प्रलोभन क्यों न देते नज़र आयें
प्रसिद्धि जिम्मेदारी भी लाती है इतना तो चर्चित चेहरों को समझना ही होगा .....
जवाब देंहटाएंकाश सब सबको दिल से चाहें, दिमाग से समझें और जिस्म की इज्जत करें।
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक लेख
जवाब देंहटाएंसटीक लेखन
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंसंतुलन पर संतुलित आलेख :)
जवाब देंहटाएंदिल दिमाग जिस्म में संतुलन बना रहे...
उपयोगी आलेख !
आभार !