"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं,
मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
सोमवार, 30 अप्रैल 2012
" स्मृति की एक बूंद मेरे काँधे पे......."
उस रात, काजल लगी, आँखों से, जो एक आंसू, टपका था तुम्हारा, मेरे काँधे पे, वक्त के साथ,
अहा, कल्पना का कण कण जी लिया आपने।
जवाब देंहटाएंवो तिल रिज़र्व रखेगा कांधा,
जवाब देंहटाएंउसके लिए,
जिसने कभी आँसू बहाए थे,कजरारी आँखों से......
ओह..बहुत गहरे अहसास होते हैं आपकी कविता में .
जवाब देंहटाएंगहरे एहसास ...एक वो कंधा जहाँ ..ये जहान भी रुकने को बेताब हैं
जवाब देंहटाएंआंसू तो सूख गया,
जवाब देंहटाएंपर काजल का,
वो एक कण,
ठहरा हुआ है वहीं,
खूबसूरत......!!
जीवन को अर्थ देते एहसास .....
जवाब देंहटाएंदर्द जीती कविता ....
बहुत ही सुंदर ....!!
शुभकामनायें ...
बहुत खूब सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही गहन भाव लिए मर्मस्पर्शी रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया लिखा है आपने ...
जवाब देंहटाएंकल 02/05/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
...'' स्मृति की एक बूंद मेरे काँधे पे '' ...
अहसासों की एक सुन्दर रचना.....
जवाब देंहटाएंसुखद एहसास ..
जवाब देंहटाएंvakt ke saath bund to sukh jati hai pat kan nam rahta hai sada.....
जवाब देंहटाएंpar*
जवाब देंहटाएंस्मृति कण को रूह की तरह महसूस करना... नमन है आपकी लेखनी को... अनूठा अहसास
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण रचना.....
जवाब देंहटाएंमेरे काँधे पे,
जवाब देंहटाएंबन एक तिल छोटा सा,
रखता हूँ जब कभी,
हथेली उसपे,
लगे रूह में जैसे,
उतर आई हो तुम ।
वाह अमित जी बहुत ही भावभीना ।
bahut hi khoob surati ke saath apne dil ke jajbaaton ko apni lekhni ke jariye uker diya hai aapne
जवाब देंहटाएंbahut hi aatmiy ahsaas
poonam
यादें रह जाती हैं ....
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंलगे
रूह में जैसे
उतर आई हो तुम …
प्रिय की छोटी-सी निशानी भी बहुत बड़ा सम्बल है…
…और कांधे पर काजल के कण का उदाहरण इससे पहले कहीं ध्यान में नहीं आया …
सुंदर बिंब !
अमित श्रीवास्तव जी
सुंदर कविता !
आभार !