शाम भी तुम,
तमाम उम्र का नाम भी तुम,
गर ख्याल से भूले भी कभी,
तो उस ख्याल का नाम भी तुम,
आती सांस में तुम,
जाती सांस में भी तुम,
आस भी तुम,
विश्वास भी तुम,
आनन्द भी तुम,
उन्माद भी तुम,
कौतूहल भी तुम,
सादगी भी तुम,
श्वेत भी तुम,
श्याम भी तुम,
और अब तो,
लगता है,
’मै’ मै नही,
वह ’मै’ भी 'तुम’ ।
जिन्दगी भी तुम और जिन्दगी का नाम भी तुम ......!
जवाब देंहटाएंपोस्ट भी तुम
और टिप्पणी भी तुम
हा..हा..हा..!
बस एक तुम्हारा ही एकाधिकार है।
जवाब देंहटाएंtumhi se shuru tumhi pe khatm ... bahut sundar pyaar bhare bhaw
जवाब देंहटाएंबेहद प्यारे शब्द सजाएँ हैं आपने "’मै’मै नही,वह ’मै’ भी 'तुम’।"
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ....सर
सम्पूर्ण समर्पण..
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति.
बहुत खूब ....समर्पण को खूबसूरती से दर्शाती हुई रचना
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंवह ’मै’ भी 'तुम’ । समर्पर्ण के भावो से सजी रचना....
जवाब देंहटाएंवाह वाह... सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसादर...
वाह ....बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंक्या बात है, जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू है ।
जवाब देंहटाएंकेवल और केवल तुम..
जवाब देंहटाएंवाह.
khud mein tum
जवाब देंहटाएंmujh mein tum
tum hi tum
sirf tum...
waah... bahut sundar...
सम्पूर्ण समर्पण की प्रभावी अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंवह ’मै’ भी 'तुम’ --- यह प्रेम भक्ति भाव का चरम है..
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंद्वैत से अद्वैत .... और इस की भी अगली स्थिति होगी "बस मैं और मैं"..... तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो ? हमीं हम हैं तो क्या हम हैं !
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