शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

"लोलाराम"

        बड़ा खुश था कि   तीन दिनों की छुट्टी एकसाथ हो रही है पूरी तरह आराम होगा ।यही सोचता हुआ ऑफ़िस से घर लौट रहा था कि अचानक कार के अगले हिस्से से अजीब सी घरड़ घरड़ की आवाज़ आना शुरु हो गई।मैने कार रोकी और उसके अगले हिस्से का मुआइना करने लगा,पर पल्ले कुछ नही पड़ा।पर चूंकि हम ठहरे मेकेनेकिल इंजीनियर सो कहां मानने वाले थे,लगे रहे जूझते रहे,पर सच में कॉलेज मे पढ़ा लिखा कुछ काम ना आया।धीरे धीरे उसी आवाज़ को संगीत समझते हुए पहुचें एक नामचीन मिसत्री के पास।उसने हमारी दशा देखकर समझा आवाज़ मेरे मे से ही आ रही है,तब मैने इशारा कार के अगले हिस्से की ओर किया ।
           चहुंओर से फ़ेरे लेने के बाद उसने बेली इंस्पेक्शन किया यानी नीचे लेटकर और फ़िर देखकर बताया कि साहब इसका "लोलाराम" बदलना पड़ेगा। मै थोड़ा चौंका कि  क्या बोल रहा है फ़िर सोचा होगी कोई चीज़।मिस्त्री साहब किसी बड़े सर्जन की तरह बोले जाइए एक नया "लोलाराम" ले आइए मै बदल दूंगा। मै चल दिया "लोलाराम" की तलाश मे,मुझे क्या पता था कि वह ओ निगेटिव खून से भी जादा रेअर होगा। खैर मै जहां भी गया जिससे भी पूछा कोई ना "लोलाराम" समझ पाया ना बता पाया कि  "लोलाराम" साहब कहां मिलेंगे।            निराश होकर मैने तय किया कि अब कार के मायके यानी कि  शोरूम चला जाय जहां से मैने कार ली थी।वहां पहुंच कर मैने अपना परिचय कार मालिक और मेकेनेकिल इंजीनियर के रूप मे दिया फ़िर भी वहां कोई मुझसे इंप्रेस नही हुआ।मेरे मुंह से "लोलाराम" सुनकर उन्हे समझ मे कुछ नही आया अलबत्ता मेरी डिग्री पर शक जरूर हुआ होगा।वहां एक समझदार टूल मेकेनिक ने मुझसे कहा अच्छा आप हाथ से छूकर बताइए कि  क्या बदलने को कहा है आपके मिस्त्री ने। जब मैने उन्हे हाथ से छूकर  बताया कि  मुझे क्या चाहिये तो सबके चेहरे पर एकदम से हंसी फ़ूट पड़ी। असल मे वह था "lower arm" फ़्रंट सस्पेंशन का।                                            फ़िर क्या था मै एक हाथ मे "लोलाराम" को कॉमनवेल्थ मे मिले गोल्ड मेडल की तरह लेकर पहुंच गया अपने मिस्त्री के पास और अब मै अपने नये  लोलाराम के साथ घर लौट रहा हूं।                                                                                                                                                                          

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