रविवार, 3 अक्टूबर 2010

गूगल चाचा से एक भेंटवार्ता

         आज बस यूं ही मन के विमान पर सवार हो कर अंतरिक्ष की यात्रा कर रहा था,तभी रास्ते में एक अजीब से कद काठी के आदमी से मुलाकात हो गई, जो बहुत ठिगना पर बहुत बड़े सिर वाला था।मैनें पूछा कौन हो भाई,"वह बोला,लो कर लो बात ,मुझे नही जानते,मै हूं तुम्हारा गूगल चाचा।पिछले जन्म में मेरा नाम लाल बुझक्कड़ था।मैने कहा अच्छा बताओ कैसे हो चाचा। बस इतना मेरा कहना था कि  लगे चाचा बुक्का फ़ाड़ कर रोने,मैनें उन्हें धीरज बंधाते हुए पूछा क्या बात है चाचा?गूगल चाचा बोले,”क्या बताऊं ,शुरू शुरू मे तो मुझे बच्चों को उनके सवाल के जवाब देनें मे बहुत आनंद आता था, पर अब क्या बच्चे, क्या बड़े, सब ऐसी बातें लिखकर पूछ डालते हैं कि  मेरे पेट में गुड़गुड़ होने लगती है।
           आगे उन्होंने बताया कि  लोग अपने दिमाग का सारा कचरा मेरे पेट मे डाल देते हैं,ना किसी को कोई शर्म है, ना कोई लिहाज़ कि  चाचा से कैसे कैसे सवाल वे पूछ रहे हैं।’साबूदाना’के बनने कि विधि  से लेकर’बच्चा ना पैदा होने पाए’ तक की तरकीब मुझसे पूछ डालते हैं ।अभी कल ही एक साहब मुझसे वियग्रा का कोई नया उपयोग पूछ रहे थे, मैने भी झल्ला कर बता दिया,  तनिक सा लेकर चाय मे डाल देना बिसकुट गलेगा नही।कैसे कैसे चित्र मेरा पेट टटोल कर देखते हैं कि मै अंदर ही अंदर शर्म के मारे कसमसाता रहता हूं पर क्या करूं,यही मेरी रोज़ी रोटी है पेट का सवाल है ,बेटा ।मैने कहा चाचा पर आप तो बहुत पुण्य का काम भी कर रहे हैं,कितनो को बीमारियों की लेटेस्ट दवाओं के बारे मे जानकारी देकर,पढ़ने वाले बच्चों को उन्हे नई नई सूचनाएं एवं तकनीकी जानकारी देकर उनका काम आसान कर रहे है।रही बात लोगों के दिमाग के कचरे की, उसे हम नादानो की नादानी समझ कर माफ़ कर दीजियेगा।इस पर चाचा मूछों ही मूछों में मुसकुराते हुए आगे निकल गए धरती की पोस्टमैनी करने गूगल अर्थ का झोला लेकर।

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