"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं,
मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
बुधवार, 8 सितंबर 2010
मन
मन आज क्षितिज सा हुआ जान पड़ता है,
दूर से मानो सब समाए मुझमें,
पास आने पर कोई न अपना सा ।
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