मंगलवार, 10 मई 2022

नज़्म का पहरा

 लफ्ज़ लफ्ज़ तेरा बेचैन करता रहा रात भर,

ख़त में लिख दे इन्हें या नज़्म का पहरा कर दे।


तकाज़ा दिल का था फिर इल्जाम जुबां पे क्यों,

मौसम बंजर बहुत इन आँखों को अब झरना कर दे।


दीदारे जुनू न रहा कोई बात नही अब 'अमित',

पलकें मचलती है बस इत्ते इल्म का सौदा कर ले।


दस्तक दें जब कभी सांसें मेरी दिल पे तेरे

लबों से चूम लेना नाम मेरा इत्ता सा वादा कर ले।

एक लड़की पहाड़ों में।

 वजह क्या जो उदास करती है,

ये लड़की खुद के पास रहती है, 


आंखे बोलती है मगर लब चुप हैं,

कुछ तो है जो भीतर घात करती है।


खिलखिलाता फूल अब गुमसुम क्यो,

भवरां बन काँटों का साथ धरती है।

रविवार, 8 मई 2022

शहद सी तुम

दूरियां तो बहुत है दरमियां

पर मन तो दूर नही न।


कुछ तुम कहो कुछ हम कहे,

बातें तो कभी खत्म न हो न।


चांद वहां आसमान यहां भी,

पहलू में सिमट कभी आओ न।


सांसे लो तुम पलकें गिरें यहां,

ख्वाब में रोज़ यूं ही आओ न।


शहद सी तुम मिष्टी सी बातें

खुल कर कभी खिलखलाओ न।