बुधवार, 6 मार्च 2019

" अभिनन्दन ......."


मूछों की इस अलगनी पर
टंगे थे कतार से
कितने भरोसे
कितने वादे
वक्त ऐसा हुआ जब
बस अंत था सन्निकट
मूँछो ने गुदगुदाया
जोश फिर थम न पाया
जाती है जान
तो जाय
नक्शा दुश्मन को
न मिल पाए
जहाज गिरा दुश्मन का
जमीन पर
वो नभ से
नभतर हो गया।