शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2014

" हर मुड़ा तुड़ा कागज कचरा नहीं होता ......"


हर मुड़ा तुड़ा कागज कचरा नहीं होता ,
आंसुओं संग बह जाये वह कजरा नहीं होता ,

मुड़े तुडे कागज़ अक्सर होते हैं खत मोहब्बत के ,
 लफ्ज़ जिसके हरेक जुगनू होते हैं 'उन' नज़रों के ,

ऐसा ही टुकड़ा एक दबा रह जाता है अक्सर नीचे तकिये के ,
और कर देता है उस ओर मुझे 'उनकी' यादों के हाशिये के ।

हाशिये पर ही ठहर गई फिर एक बार कलम उनकी  ,
दिल कह रहा है आंसुओं से बन जाओ अब स्याही उनकी ।

हाँ ,यह सच है आँखें आँसू बहाना चाहती हैं ,
यह भी सच है , कोई तो 'बहाना' चाहती हैं । 

बुधवार, 1 अक्टूबर 2014

" सफाई तो हो गई .......देखते देखते "


आनन फानन में बड़े साहब ने मीटिंग बुलाई | विचार हुआ कि २ अक्टूबर के मौके पर कार्यालय प्रांगण की सफाई की जानी है | कुल कर्मचारी /अधिकारी मिला कर गिनती हुई १२१ , अरे यह तो बहुत शुभ अंक है ,अवश्य कुछ अच्छा होने को है ,बड़े साहब बोले | 

सफाई के लिये सब लोग अपने अपने घरों से झाड़ू लेते आयेंगे , एक कर्मचारी ने राय दी | उस कर्मचारी को घूरते हुये बड़े साहब बोले ," नहीं घर का सामान ,दफ्तर मे नहीं लाया जायेगा , यह उचित नहीं |" अपने सबसे खास 'टेंडर बाबू' को बुलाकर कहा ,"शीघ्र एक अल्प कालिक निविदा आमंत्रित करो और उसके माध्यम से १५० अदद झाड़ू और १५० जोड़े दस्ताने क्रय करने क़ी व्यवस्था करो |"

अब सबसे पहला काम झाड़ू की डिज़ाइन का मानक तय करना था | झाड़ू के डंडे की लंबाई , मोटाई और उस पर उच्च कोटि के केसरिया रंग के पेन्ट का कोड तय कर दिया गया | झाड़ू की सींको का 'फ्रंट प्रोफ़ाइल' कुछ इस प्रकार ' डिज़ाइन' किया गया कि झाड़ू लगाते समय झाड़ू और जमीन के मध्य २० अंश का कोण बन सके ,क्योंकि रिसर्च से पता चला है कि इसी अंश के कोण पर झाड़ू से न्यूनतम श्रम के सापेक्ष अधिकतम आउटपुट मिलता है | झाड़ू के सींको के विषय में आम राय यह बनी कि ,सींको के स्थान पर 'ओप्टिकल फाइबर' का प्रयोग किया जाय और झाड़ू के डंडे के उपरी सिरे पर भीतर एक बैटरी चालित बल्ब लगा हो | खोखले डंडे के भीतर से रोशनी प्रवेश करते हुये 'ओप्टिकल फाइबर' वाली सींको से रोशनी उस स्थान पर पड़ेगी जहां सफाई किया जाना होगा | इतनी हाईटेक झाड़ू से कोई भी कूड़ा करकट बचा रहा जाय ,असंभव है | रात को भी अगर सामूहिक सफाई की जायेगी ,इतनी उच्च तकनीक की झाड़ू से, तो मंगल से धरती पर देखने पर असंख्य तारे से बिछे दिखेंगे ज़मीन पर | प्रत्येक झाड़ू पर एक संदेश भी लिखा होगा कि " झाड़ू चलायें ,स्वास्थ्य बनायें |"

अगला मानक दस्तानों का तय किया जाना था | दस्ताने बहुत ही मुलायम और हल्के डिज़ाइन किये गये ,जिससे उन्हे पहनने के बाद भी कलाइयों की लचक बनी रहे क्योंकि झाड़ू लगाते समय कलाई और कमर में लोच / लचक बहुत आवश्यक है |(इस बात पर भी बहुतों ने हामी भरी |) 
 
दोनो महत्वपूर्ण वस्तुओं की कीमत मिलाकर टेंडर की राशि तय हो रही है | बड़े साहब मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं | सफाई तो अब लगभग तय है , भले ही वह सरकारी खजाने की हो |