हर मुड़ा तुड़ा कागज कचरा नहीं होता ,
आंसुओं संग बह जाये वह कजरा नहीं होता ,
मुड़े तुडे कागज़ अक्सर होते हैं खत मोहब्बत के ,
लफ्ज़ जिसके हरेक जुगनू होते हैं 'उन' नज़रों के ,
ऐसा ही टुकड़ा एक दबा रह जाता है अक्सर नीचे तकिये के ,
और कर देता है उस ओर मुझे 'उनकी' यादों के हाशिये के ।
हाशिये पर ही ठहर गई फिर एक बार कलम उनकी ,
दिल कह रहा है आंसुओं से बन जाओ अब स्याही उनकी ।
हाँ ,यह सच है आँखें आँसू बहाना चाहती हैं ,
यह भी सच है , कोई तो 'बहाना' चाहती हैं ।