मंगलवार, 21 जून 2011

"उनके ....मन...में"

तासीर

ही

थी,

मोहब्बत में

मेरी,

कि,

सुना

है

भाने लगा

हूँ,

मै

उन्हें

 अब,

नज़रें चुराते थे

जो पहले,

चुरा के नज़र

देखतें है

अब,

आखिर यकीं

गहरा हुआ, 

अधूरा इश्क

पूरा हुआ,

सिफारिश की

उन्हीं  की

नज़रों ने,

दिल से उनके

कि संजों लें

मुझे

वे 

अब 

अपने

मन

 में |

5 टिप्‍पणियां:

  1. नज़रें चुराते थे
    जो पहले
    चुरा के नज़र
    देखतें है अब,
    ,
    बहुत खूब.

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  2. bahut khoob . najre mila ke najre churana unka soak ho gaya ,jab yaki aaya hamri bafaoan ka to guror unka chakna choor ho gaya ,,,,,,,

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  3. बहुत सुन्दर रचना।
    आपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्‍वागत है
    http://tetalaa.blogspot.com/

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  4. अमित जी आपकी कविता पढ़ का ....मुझे खुद का आईना नजर आया
    ऐसा ही कुछ कुछ होता है .....जब कोई आपका अपना पलट के आपको गौर से देखे तो....आभार

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  5. यह परिवर्तन समय के साथ हो जाता है, बहुत सुन्दर।

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