tag:blogger.com,1999:blog-8505231129291060059.post8766125522765035590..comments2024-02-17T14:31:07.181+05:30Comments on "बस यूँ ही " .......अमित: "संतुलन"amit kumar srivastavahttp://www.blogger.com/profile/10782338665454125720noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-8505231129291060059.post-54999246970059723832011-12-04T15:19:16.154+05:302011-12-04T15:19:16.154+05:30सादा मिजाज़ .... आपकी कविता की ख़ूबी लगी....शुभकाम...सादा मिजाज़ .... आपकी कविता की ख़ूबी लगी....शुभकामनाएंराजेश चड्ढ़ाhttps://www.blogger.com/profile/13615403040017262901noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8505231129291060059.post-45394474159690360662011-03-15T18:52:02.281+05:302011-03-15T18:52:02.281+05:30यह एहसास ही बहुत है...
एहसास के साथ ही संतुलन आ जा...यह एहसास ही बहुत है...<br />एहसास के साथ ही संतुलन आ जाता है!!<br />न जाने कितने लोग इस एहसास से ही वंचित हैं...<br />आपकी साफगोई को सलाम....***Punam***https://www.blogger.com/profile/01924785129940767667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8505231129291060059.post-21228205596607129842011-03-12T07:21:37.918+05:302011-03-12T07:21:37.918+05:30माँ से दूर होने की व्यथा को अंगुलियाँ नहीं पकड़ पा...माँ से दूर होने की व्यथा को अंगुलियाँ नहीं पकड़ पाने जैसे शब्दों के साथ व्यक्त किया आपने ...बचपन में माता पिता अपनी अंगुली थाम कर हमें चलना सिखाते हैं , और जब उन्हें हमारी अँगुलियों की जरुरत हो , हमें वक़्त नहीं मिलता ...दुखद है मगर सत्य भी !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8505231129291060059.post-46941351803191356592010-12-09T23:39:45.143+05:302010-12-09T23:39:45.143+05:30सच-बयानी भी अच्छी लगती है? पर अजीब सा लगता है कि स...सच-बयानी भी अच्छी लगती है? पर अजीब सा लगता है कि सच लिख्नने के बाद मन बहुत हल्का हो जाता है।कुछ कुछ अपराध स्वीकारने का सा बोध होने लगता है। आप सभी लोगों को बहुत बहुत धन्यवाद इतना स्नेह देने के लिये।amit kumar srivastavahttps://www.blogger.com/profile/10782338665454125720noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8505231129291060059.post-31535575117374922172010-12-09T22:53:33.514+05:302010-12-09T22:53:33.514+05:30पर हां थोड़ा "संतुलन" बना पाने में,
जरूर...पर हां थोड़ा "संतुलन" बना पाने में,<br />जरूर विफ़ल रहा हूं,<br />नई और विरासत की उंगलियों में<br /><br />यह आज की सच्चाई है जिसे आपने बहुत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है..अहसासों से पूर्ण सुन्दर रचना..आभारKailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8505231129291060059.post-10905981575529127272010-12-09T17:17:04.054+05:302010-12-09T17:17:04.054+05:30पर हां थोड़ा "संतुलन" बना पाने में,
जरूर ...पर हां थोड़ा "संतुलन" बना पाने में,<br />जरूर विफ़ल रहा हूं,<br />नई और विरासत की उंगलियों में। <br /><br />गहरी और सच बात कह दी ………आज हर इंसान कि यहीकहानी है।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8505231129291060059.post-12984708334154310562010-12-09T15:19:11.217+05:302010-12-09T15:19:11.217+05:30गहरी बात कह गए हैं ....माँ खुद ही संतुलन बना देती ...गहरी बात कह गए हैं ....माँ खुद ही संतुलन बना देती है ...भले ही आप नयी उँगलियों को संतुलित करते रहें ...भावमयी रचना .संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8505231129291060059.post-18388607063258424052010-12-09T12:16:10.786+05:302010-12-09T12:16:10.786+05:30मां को लगा शायद,
मैं उनकी उंगलियों का स्पर्श,
कंही...मां को लगा शायद,<br />मैं उनकी उंगलियों का स्पर्श,<br />कंही भूल गया हूं,<br />ऐसा कदापि नही हो सकता,<br />पर हां थोड़ा "संतुलन" बना पाने में,<br />जरूर विफ़ल रहा हूं,<br />नई और विरासत की उंगलियों में। <br /><br />कौन भूल सकता उन उँगलियों को थामकर मिला जीवन जीने का संतुलन .... उम्दा रचना डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8505231129291060059.post-61648829020451509842010-12-09T07:53:03.943+05:302010-12-09T07:53:03.943+05:30बेहतरीन ..उँगलियों के बहाने सब कह दिया .......बेहतरीन ..उँगलियों के बहाने सब कह दिया .......sonalhttps://www.blogger.com/profile/03825288197884855464noreply@blogger.com