शनिवार, 30 मई 2015

" चाँदी का वर्क ....."


आहिस्ता से भीतर आई ,
एक मंद बहार सी तुम ,
ख्यालों में कुछ और था ,
बेख्याली में दखल तुम ,
लफ्ज़ होंठों पे सजे यूँ ,
सरगम सजी हो जैसे सितार पे ,
पलकें उठाईं थीं ऊपर तुमने ,
अवाक मैं निर्वात आलम ,
आफताब सी दमक ,
और माहताब सा चेहरा ,
काजल की लकीर ,
ज्यों शाख हो नजमों की ,
तितली सी पलकें ,
और चाँद सी तबस्सुम ,
गोया वर्क हो ,
चांदी की जैसे ,
खुदा के नूर पे ।

मंगलवार, 19 मई 2015

" रोज़ रात टूटता हूँ "


सवेरे चिपका कर 
नकली हंसी का मुखौटा 
बैठ जाता हूँ 
ज़िन्दगी की हाट में 
महसूस करता हूँ 
लोगों की मुस्कराहट का स्पर्श । 

दिन ढले तक 
आंका जाता हूँ 
मेरी हंसी के मुताबिक 
हर किसी के तय किये दामों में 
आसान नहीं होता 
यूं सुबह शाम 
बेदिल लिबास बदलना 
पर बदलता हूँ 
बदलाव नियति है न । 

रोज़ रात 
समेटता हूँ तन्हा 
फिर वही बिखरी ज़िन्दगी 
जोड़ता हूँ टूटन 
किसी की ख़ुशी की खातिर 
गिरता हूँ फिर
बन कर 'एक टूटता तारा ' ॥ 
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