मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

" फरवरी ..उनतीस की....."


इस वर्ष फिर फरवरी हरी भरी लग रही है । मात्र एक दिन अधिक होने जाने से ही फरवरी माह का रूप स्वरूप विशेष हो जाता है ।चार वर्षों के अंतराल पर ही सही पर जब भी फरवरी २९ की होती है ,लगता है जैसे साल में एक दिन नहीं अपितु आयु में एक दिन और जुड़ गया ।


चार वर्षों में एक बार होने वाली ऐसी घटना को विशेष महत्व दिया जाना चाहिए । इस दिन जो भी कार्य  किया जाएगा उसकी पुनरावृति चार वर्षों में ही हो सकेगी । नया वर्ष तो प्रत्येक वर्ष ही मनाया जाता है । क्यों न चार वर्षों में एक बार आने वाली इस तिथि को भी उत्सव के रूप में मनाया जाय ।


परीक्षा के दिनों में यदि कभी परीक्षाएं एक भी दिन के लिए पोस्टपोन हो जाती थी ,लगता था कितना समय और मिल गया । उसी प्रकार फरवरी माह के उन्तीसवें दिन को हम सब अपने जीवन में आया एक अतिरिक्त दिन मानते हुए उत्सव क्यों  न मनाये और इस दिन को प्यार, स्नेह, समर्पण के भाव से भर दे।

"अतिरिक्त दिन का,
अतिरिक्त प्यार,
सिर्फ हमारे लिए,
जब तुम न थी,
सब अति रिक्त था,
अब तुम हो,
सब अतिरिक्त है,
मुझे करो तुम रिक्त,
इतना प्यार हो अतिरिक्त , 
इस अतिरिक्तता के अतिरेक में,
बस जीवन हो जाए रिक्त । "



गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

" खुश करती खुशबू ......"

अहसास,
कि तुम मिलोगी,
ये आभास,
कि तुम मिलोगी,
ये ख़याल,
कि तुम होगी,
और रोज़ की तरह,
खिलखिलाती,
मींच आँखे,
सकुचाते,
लजाते,
यह कहोगी,
नहीं थे आप,
सूना था सब,
फिर मन ही मन,
खुश होना तुम्हारा ,
निहारना,
और बिखेर देना,
आँखों से अपनी,
एक खुशबू,
जो घुल सी जाती है,
मेरी साँसों में |  
और,
यही साँसे,
हो जाती है,
बे-खुशबू,
उदास हो,
चलती हैं,
फिर हवाएं,
दीवारें लगती हैं ,
जकड़ने ,
जब कह,
निकलती हो,
तुम कि,
अच्छा,
हम चलते हैं |

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

" गुनगुने आंसू ...."


बर्फ से गाल पे,
लुढकी दो बूंदे,
आंसुओं की,
गुनगुनी सी |
बन गई लकीर,
नमक की |
लोग कह उठे,
चेहरे पे उसके,
तो नमक है |
मन की भाप,
कितनी उठी होगी,
कितनी सूखी होगी,
तब शायद,
बना होगा,
नमक चेहरे पे |
गुनगुने आंसू ,
गर जो पा जाए,
हथेलियाँ,
सूखने से पहले ,
गुनगुना उठते हैं,
कुछ बोल मोहब्बत के |

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

" इतना ही तो कहा था ....."



इतना ही तो कहा था,
थोड़ा काजल लगा लेना,
पलकें तितली हो जाती |
इतना ही तो कहा था,
बिंदी बड़ी लगाना,
चाँद पे चाँद उग आता |
इतना ही तो कहा था,
होठों पे लाली मत लगाना,
रंग का उतरना अच्छा नहीं होता |
इतना ही तो कहा था,
साड़ी गुलाबी पहनना ,
गुलाब पूरा गुलाबी हो जाता |
इतना ही तो कहा था,
केश गीले ही बाँध लेना,
टपकती बूंदे उर-माला बन जाती |
इतना ही तो कहा था,
बस मेरी बाट जोहना,
अधीरता तुम्हारी,
पागल करती मुझे |
इतना ही तो कहा था,
आलिंगन ऐसा करना,
सदियों से व्याकुल हो जैसे कोई |
पर तुमने ऐसा कुछ न किया ।
भय था तुम्हे ,
तुम्हारे प्यार के आगोश में ,
कहीं मै दम न तोड़ देता  |
हाँ ! तुम्हारा शक ठीक था,
ज़िन्दगी में सब कुछ मिला,
प्यार के सिवा |
इतना जो प्यार मिलता,
मर ही तो जाता मै शायद ..............!  

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

" मतदाता व्यथा ......"

                  
                  २ जी ,३ जी क्या है ,नहीं मालूम । सुखराम क्यों जेल गए नहीं मालूम। राजा ,कनिमोझी ने किसकी फसल काट ली थी ,जो जेल गए ,नहीं मालूम ।बोफोर्स ,ताबूत घोटाला क्या है ,नहीं मालूम ।बड़े बड़े लोकप्रिय ,पढ़े लिखे काबिल नेता अचानक जेल क्यों चले जाते है ,नहीं मालूम ।पोंटी चड्ढा के यहाँ से इतना रुपया क्यों मिला और अगर मिला तो वहां अभी तक एकत्र किसने होने दिया ,नहीं मालूम । चारा घोटाला,खाद्दान घोटाला कब हुआ ,किसने किया ,किसे सजा मिली ,नहीं मालूम ।
                 साईकिल पर चलने वाले रातो रात इतनी लम्बी गाड़ियों के मालिक कैसे बन जाते है ,नहीं मालूम । इतनी हाई मेरिट वाले आई. ए. एस./ आई.पी.एस. अफसर,नेताओं के आगे क्यों बौने हो जाते है ,नहीं मालूम ।जो इतनी अच्छी अच्छी बाते करते है ,दरअसल उनके इतने नीच कर्म कैसे होते है ,नहीं मालूम ।
                हाँ! इतना अवश्य मालूम हो गया है कि अपने देश में धन दौलत की कोई कमी नहीं है ,योजनाओं की कोई कमी नहीं है । परन्तु कोई भी दल हो ,कोई भी नेता हो या उस कड़ी का कोई भी अफसर हो वो तो आम आदमी के हित में लगाए जाने वाले धन को ऐसे सोख लेता है जैसे ब्लाटिंग पेपर स्याही सोख लेता  है ।
                आखिर चुनाव में वोट दे तो किसे दे ? हम लोगो को जाति धर्म में उलझा कर सभी दल बस सत्ता पर काबिज होने की फिराक में है । न किसी का कोई सिद्धांत , न कोई प्रतिबद्धता ।
                परन्तु नेताओं को अब सचेत हो जाना चाहिए क्योँ कि जनता अब जान गई है कि देश में अब किसी जाति धर्म या समाज के नाम पर संघर्ष नहीं होगा । अब केवल दो वर्ग स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ने लगे है । एक  है 'वंचित वर्ग' और दूसरा 'संचित वर्ग' । वंचित वर्ग में वे लोग है जो वंचित है अवसरों से ,धन से,संसाधनों से और संचित वर्ग में वे लोग है जिन्होंने इतना अधिक संचित कर लिया है कि शायद आने वाली कई पीढ़ियों तक उन्हें कोई श्रम नहीं करना पडेगा । लेकिन जिस दिन वंचित वर्ग सही मायने में जागरूक हो जाएगा ,संचित वर्ग को शरण लेने के लिए इस धरती पर जगह मिलना कठिन हो जाएगा ।
                बेहतर हो,नेता-अफसर  तनिक आत्मविवेचना करे ,थोड़ा सा आम आदमी के प्रति जवादेही महसूस करे । देश को प्रगतिशील बनाने हेतु शिक्षा,स्वास्थ्य,अवस्थापना के क्षेत्र में ठोस कार्य करें । अन्यथा की स्थिति में जहां अन्य देश पूरे विश्व को मुट्ठी में कर प्रत्येक क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा कर तरक्की कर रहे हैं ,हम लोग पूरे विश्व में केवल श्रमिक के रूप में ही देखे जायेंगे ।

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

" सोने की जगह तो फिक्स हो गई....."

                                                       
                                                                       " ०३ फरवरी १९८८ "

                  गाय का नवजात बछड़ा जन्म के साथ ही उछलने कूदने लगता है । एक दो दिन बाद तो वह इतनी तेज़ दौड़ता-भागता है कि उसे पकड़ना अत्यंत कठिन सा हो जाता है ।फिर धीरे धीरे वह बड़ा होता है और अपने में संयत होने लगता है । धीरे धीरे माँ का दूध पीना छोड़ भूसा खाना शुरू करता है । यहीं से उसका बछड़ा-पन समाप्त-प्राय होने लगता है और बैल बनने की प्रक्रिया प्रारम्भ होने लगती है । धीरे धीरे जब वह पूरा बैल बन जाता है ,तब तक उसका पूरा बछड़ा-पन ,उत्साह ,उमंग ,स्फूर्ति सब लुप्त सी हो जाती है और बस अपने दायरे में वह गोल गोल घूमना शुरू कर देता है और जीवन पर्यन्त बस वैसे ही घूमता रहता है ।
                  विवाह से पूर्व कोई भी लड़का बस बछड़े जैसा ही होता है । जोश ,जवानी,उमंग ,स्फूर्ति से भरा-पूरा और कुछ भी कर गुजरने को एकदम तत्पर ,एकदम 'may i help you' के अंदाज़ में , और विवाह के बाद उसके ये सारे गुण exponentially कम होने लगते है । 
                  विवाह का सबसे बड़ा लाभ ,जो संभवतः प्रत्येक व्यक्ति को होता होगा ,मुझे भी हुआ था कि कम से कम सोने का स्थान एक निश्चित स्थान पर तय हो जाता है, नहीं तो उसके पूर्व रोज़ रात में निर्देश कुछ इस तरह मिलते थे ,आज तुम बरामदे में सो जाओ ,या आँगन में सो जाओ या छोटे भाई के साथ या ताऊ जी के साथ या छत पर या पढ़ाई के कमरे में ही, या न जाने कहाँ कहाँ ।
                 आज हमारे विवाह को २४ वर्ष हो गए और २५ गांठे लग चुकी है ,निवेदिता संग । पहली गाँठ तो विवाह के साथ ही लग जाती है न ,इस तरह मेरे हिसाब से तो यह २५वी गाँठ है ।प्रारम्भ में हम दोनों में घोर प्यार रहा ,एकदम दही जलेबी सा, फिर थोड़ा थोड़ा हम दोनों गुस्सा भी करने लगे ,कभी गुस्सा इतना बढ़ा कि गुस्से के दौरान किस कारण नाराजगी हुई थी, यही भूल जाते थे । फिर मै  केवल इतना पूछता था कि, थोड़ी देर शांत होकर यह बता दो हम लोगों की लड़ाई क्यों हुई है ,याद करा दो ,मै तो टॉपिक ही भूल गया हूँ ,वह टॉपिक याद करा देतीं ,मै फिर गुस्सा गतांक से  आगे जारी कर देता ।
                 लेकिन इस सब खेल में अचानक से twist आ गया । दोनों बेटे जब थोड़ा बड़े और समझदार हुए तो दोनों अपनी माँ को बिना शर्त सरकार चलाने में समर्थन देने लगे । किसी भी मुद्दे पर मै तीन-एक के मत विभाजन से परास्त होने लगा । मुझे समझ में आ गया कि  विधायकी तो गई अब जमानत जब्त होने के दिन आ गए मेरे । मैंने फिर समझदारी का परिचय देते हुए (मन ही मन ) निवेदिता की  श्रेष्ठता अंगीकृत कर ली । इसके बावजूद भी मुझे प्रायः loyalty test से गुजरना पड़ता है ,परिणाम स्वरूप अनेक बार मुझे 'तन्खैय्या' घोषित किया गया और प्रायश्चित के तौर पर तरह तरह की कार-सेवा अब भी करनी पड़ती है ।
                 आज २४ वर्षों बाद स्थिति यह है कि हम दोनों में स्नेह और प्यार चरम पर है लेकिन वह परिस्थिति-जन्य रहता है । जैसे शिया-सुन्नी के बीच कि, वैसे तो आपस में एक दूसरे के सिद्धांतो के विरोधी, पर जब हमला कही और से, तब वे आपस में एकदम एक ।
                 हाँ ! अपने घर का प्रधान मंत्री मै ही हूँ ,पर सोनिया तो वही है ना,दूसरे देश से जो आई है ।
                "इतना अवश्य  कहूँगा  कि  पत्नी से प्यार भले ही कम हो जाए पर अपने इतने प्यारे बच्चों की प्यारी माँ से प्यार कैसे कम हो सकता है कभी। "